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बिक रही हैं लड़कियाँ

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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बिक रही हैं लड़कियाँ


बिक रही हैं लड़कियाँ

धड़ल्ले से वेश-वृति में

बस उनका ख़रीद-फ़रोख्त

कोठे-मुजरे से हटकर

सौन्दर्य के नाम पर

अंग-प्रतियोगिताओं

अंग-मॉडलिंग, अंग-सिनेमा

अंग-प्रदर्शन के और तमाम

नए-से-नए कामुक लक-दक में

बड़ी सफ़ाई से

तब्दील हो गया है |


बिक रही हैं लड़कियाँ

धड़ल्ले से वेश-वृति में

शिखर आधुनिकता के

शौकीन महाजनों की

अति सम्मानित, भद्र भड़ुओं की

पारखी निगाहें

उनकी जवानी पर

उनके अंग-अंग पर

अंगों के उतर-चढ़ाव पर

अच्छी तरह लगी हुई हैं

सहभागी डिज़ाइनरों ने

उनके ख़ातिर

ऊँची एड़ी की सैंडल

कामुकता के उत्थान में

इसलिए डिज़ाइन की

कि चलते समय

वक्षोज और आगे उभर आएँ

नितम्ब और पीछे उभर जाएँ

कमर में और अधिक लचक आ जाए

चाल हंस की तरह हो जाए

जिससे बिकवाली में तेज़ी आए

सेंसेक्स ऊपर उठे

और निवेशकों के कारोबार में

भारी इज़ाफ़ा हो |


बिक रही हैं लड़कियाँ

धड़ल्ले से वेश-वृति में

अब तो उनके वज़न

लम्बाई–कमर

टांगों-जाघों के

बाकायदा मानदण्ड निर्धारित किए गए हैं

निर्धारित मानदण्ड के लिए

‘योगा’, व्यायाम, डायटिंग की

लोकल, राष्ट्रीय, अंतर-राष्ट्रीय दुकानें

तेज़ी के साथ फल–फूल रही हैं |


रंडी शब्द अपने आप में

कितना अश्लील है

कितना भोंडा है

कितना बिकाऊ अर्थात् लिए हुए है

समाज में इसकी बेहतरी के लिए

कारपोरेट-जगत के

देवताओं के इशारों पर

मॉर्डन बाज़ारवाद के नाम से

पुलिस पुराने ढंग के कोठों पर

रे’ड डालती है

पीटती है

पुराने ढंग की रंडियों को

उनके पुराने पड़ गए भड़ुओं को

लेकिन नए ज़माने का लाइसेंस लिए

भारी भीड़ के सामने

भरी जवानी में

अंगों का शो करनेवाली लड़कियाँ

पुलिस के सुरक्षा घेरे में चलती हैं

कमाती हैं लाखों-करोड़ों

पाती हैं बड़े-बड़े पुरस्कार

उनके टीम के

गाजे-बाजों के

उनके सारे तमाशों के

आधुनिक आयोजकों को

मिलता है बड़ा-बड़ा नाम

नोटों की बड़ी-बड़ी गड्डियाँ |


बिक रही हैं लड़कियाँ

धड़ल्ले से वेश-वृति में

उनके अंग-प्रत्यंग

अलग-अलग कोणों से

नए-नए फ़ैशन-ग्लैमर के साथ

वैभव की ऊँची-से-ऊँची

खिलखिलाती साज़-सज्जा में

रंगीन रोशनी के घने चकमक में

जुटाई गई

ख़ास भीड़ के सामने

अर्ध नग्न बिकते हैं

ऊपर-नीचे के लज्जा-अंग

बहुत महीन, बहुत पारदर्शी, बहुत कम

डिज़ाइन किए गए कपड़ों में

बहुतायत से बिकने लगे हैं

जबकि कमतरीन कपड़ों को

बर्ख़ास्त कर

अत्याधुनिक शैली के चहेते

सैर-सपाटे के खुलेपन तक

पूरी नग्नता के फ़ैशन की

एक और नई किस्म

खोज चुके हैं

बाज़ार में उस नई किस्म के

आने भर की देर है |


नामदारों के हस्ताक्षर

क्या नहीं कर सकते

पैसा और यौवन और बुद्धि और बल

अगर एक ही ध्रुव पर

इकट्ठे हो जाएँ

उनकी सुरक्षा का पहरा

शासन के हाथ में हो

तो किसकी मजाल

तनिक मुँह बिचका सके

उन पर उँगली उठा सके

इसलिए बिक रही हैं लड़कियाँ

धड़ल्ले से वेश-वृति में |


— संतलाल करुण, ‘अतलस्पर्श’ से

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