Menu
blogid : 12407 postid : 150

मेरे पास आँकड़ा नहीं है !

अंतर्नाद
अंतर्नाद
  • 64 Posts
  • 1122 Comments

मेरे पास आँकड़ा नहीं है !


मेरे पास

आँकड़ा नहीं है

कि छल-कपट, धोखा

फिर बलात्कार

और फिर ह्त्या के लिए

उच्चतम न्यायालय से

मौत की सज़ा पाए

कितने ह्रिंस हैवानों को

राष्ट्रपति-भवन ने

क्षमा-दान दे दिया |


मेरे पास

छब्बीस जनवरी

उन्नीस सौ पचास से

अब तक का

आँकड़ा नहीं है |


नहीं है

मेरे पास आँकड़ा

कि कितनी दामिनियों की

मौत से जुड़ी

अंत पीड़ा

कठोर, अश्लील यातना

अपमान

राष्ट्रपति-भवन को

निर्मूल्य

बेमतलब लगे

और क्रूर कामुकता के

कितने कातिल गैंडों को

अब तक

बक्शा गया |


उच्चतम न्यायालय से

दुष्कर्म के लिए

सज़ायाफ्ता

निर्दय, हत्यारे

बलात्कारियों को

मृत्यु-दंड का

क्षमा-दान !

क्या बलात्कारियों की

बेरहम जमात को

रक्तबीज की तरह

बढ़ावा नहीं देता ?

क्या आए दिन

आधी आबादी से

कुछ और सुकोमल

इच्छाओं-भावनाओं को

खून के आँसू

नहीं रुलाता ?

क्या रोज-रोज

कुछ और

दामिनियों की

अकाल, दानवी बलि

नहीं लेता ?


पुलिस

डॉक्टर

वकील

जज

सब-के-सब

रे’अर और रेअरे’स्ट की

बात करते हैं

पर कितनी

रे’अर और रेअरे’स्ट

दामिनियीं रहीं

कि जिनकी

चीख-पुकार

और गुहार

और आँसू

और पीड़ा

और अपमान

और शोक

उच्चतम न्यायालय के

न्याय के बावजूद

राष्ट्रपति-भवन को

नासमझ लगे |


मेरे पास

आँकड़ा नहीं है

बीते चौसठ सालों का

कि रेअरे’स्ट

नारी व उसकी आत्मा

कब-कब

और कहाँ-कहाँ

सातों सागरों को

भर देने जितना

आँसू बहाती रही

दुनिया की सारी

अदालतों के

कानों को

गुँजा देनेवाली

पुकार-गुहार लगाती रही

और आखिरकार

राष्ट्रपति-भवन

पसीजा भी तो

नीच, कुकर्मी

लम्पटों, गुण्डे-बदमाशों

हैवानों के लिए |


मैं बेटी का रोना

समझता हूँ

क्योंकि मैं एक पिता हूँ

मैं बहन का दर्द

जानता हूँ

क्योंकि मैं एक भाई हूँ

मैं पत्नी का मान

मानता हूँ

क्योंकि मैं एक पति हूँ

और माँ

माँ तो माँ होती है

संतानवती

वेश्या भी

ममत्व का

आगार ढोती है |

इसलिए

मेरा सीना

छलनी-छलनी होता है

कि नारी के

चारों रूपों में

समाहित नारीत्व

नर से नारायण तक को

सनेह अमृत की

सौगात देता नारीत्व

देश की

स्वतंत्रता

संप्रभुता

महान संविधान के

संरक्षण में भी

आज तक सुरक्षित

क्यों न हो सका |


मेरे पास

आँकड़ा नहीं है

उच्चतम लोक-सदन

उच्चतम न्याय-सदन

उच्चतम राज-सदन

आँखों पे क़ानून की

पट्टी बाँधे

बस वही रेअरे’स्ट का

रट्टा लगा रहे हैं

जबकि रेअरे’स्टों के

तमाम गुनहगार

ठिठोली उड़ा रहे हैं

मेरी रेअरे’स्ट माँओं

रेअरे’स्ट बहनों

रेअरे’स्ट बेटियों की

उनकी निर्मम मौत

और उनकी

चीखें मारती आत्मा की

ऊपर से घूम रहे हैं

सीना ताने सरे बाज़ार

या जेलों में

पाले जा रहे हैं

मरकहे साँड़ की तरह |


…और मेरे पास

आँकड़ा नहीं है,

नहीं है

मेरे पास आँकड़ा !


— संतलाल करुण

Read Comments

    Post a comment