Menu
blogid : 12407 postid : 775238

साथ जीने की सज़ा

अंतर्नाद
अंतर्नाद
  • 64 Posts
  • 1122 Comments

साथ जीने की सज़ा


चाहतों ने गुलजमीं पे चाँदनी जब छा दिया

आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |


हाथ कैदी की तरह सहमे हुए थे कैद में

कैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |


पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी

हौसले ने वक्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |


होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े

फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |


मातमी अंदाज़ में लोगों का जमघट था लगा

साथ जीने की सज़ा ने मौत को झुठला दिया |


— संतलाल करुण

Read Comments

    Post a comment