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हाते का पेड़

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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हाते का पेड़


घर के हाते मेँ

हिल-हिल के रोया है पेड़ ।

आज धरती पे

गिरा, ठूँठ सोया है पेड़ ।


पेड़ के कोटर मेँ

एक चिड़िया रहा करती थी

मैँ तो इस पेड़ की

चिड़िया हूँ, कहा करती थी ।

चार चिड़ियाएँ छोटी

पेड़ पे फिर आने लगीँ

सभी हिल-मिल के

मीठे-मीठे गीत गाने लगीँ ।

एक दिन, सब कुछ छोड़

कोटर से उड़ गई चिड़िया

छोटी चिड़ियाओँ को

कोटर मेँ रख गई चिड़िया,

डाल हर उस दिन

आँसू से भिगोया है पेड़ ।


दिन गए,  माह गए

साल दो-चार गए,

याद मेँ चिड़िया के

हर पत्ते हँसी भूल गए ।

एक दिन आई

उसी पेड़ पे नई चिड़िया

चारोँ चिड़ियाओँ के

मन भाई वह नई चिड़िया,

डाल पे बैठ-बैठ

मीठे गीत गाने लगी

चुन के तिनका-तिनका

कोटर वह सजाने लगी,

फिर तो लौटे हुए

मौसम मेँ समोया है पेड़ ।


फिर उसी कोटर मेँ

चिड़ियाएँ सभी रहने लगीँ

कभी चहकार, कभी

चोँ-चोँ रार करने लगीँ,

हर एक रार मेँ

कोटर का चैन छिन जाता

हर एक रार मेँ

जड़ोँ से पेड़ हिल जाता

हर एक रार मेँ

पत्ता कोई बिखर जाता

हर एक रार मेँ

घावोँ से पेड़ भर जाता,

आँधी-पानी से नहीँ

रो-रो के सोया है पेड़ ।


पेड़ हाते का

रिश्तोँ से हरा होता है

अपनी जड़ पे नहीँ

चाहत पे खड़ा होता है

वह तने से नहीँ

मानोँ से बड़ा होता है

पेड़ हाते का

यादोँ से लदा होता है ।

आज डालोँ की नहीँ,

फूल-पत्तोँ की नहीँ,

मर्म भारी जो पड़े

साथ उनका भी नहीँ,

आज, बेखौफ़ पड़ा

ख़ुद मेँ खोया है पेड़ ।


— संतलाल करुण

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