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ये कैसी धुन है !

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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ये कैसी धुन है !


सबकुछ जाने सबकुछ समझे

पागल ये फिर भी धुन है

औचक टूट गए सपनों की

उचटी आँखों की धुन है |


इस धुन की ना जीभ सलामत

ना इस धुन के होठ सलामत

लँगड़े, बहरे, अंधे मन की

व्याकुल ये कैसी धुन है |


खेल-खिलौने टूटे-फूटे

भरे पोटली चिथड़े-पुथड़े

अत्तल-पत्तल बाँह दबाए

खोले-बाँधे की धुन है |


क्या खोया-पाना, ना पाना

अता-पता न कोई ठिकाना

भरे शहर की अटरी-पटरी

पर गिरती-पड़ती धुन है |


फूटा लोटा, टूटी डोरी

भठे कुएँ पर खड़ा बटोही

बेसुध कंकड़-पत्थर भरती

ये कैसी प्यासी धुन है |


किए-धरे का लेखा-जोखा

झाड़ों ने कब तौला-देखा

काँटों में घायल पंखों की

ज्यों फड़फड़ करती धुन है |


ऐसा होता, वैसा होता

तो आज समय कैसा होता

बीती बातों को धुनने की

बेमतलब गुनती धुन है |


— संतलाल करुण

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