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प्रकृति-कथा

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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प्रकृति-कथा


एक सर्प ने समझ मूषिका

ज्यों पकड़ा एक छछुंदर को

उसी समय एक मोर झपट

कर दिया चोंच उस विषधर को |


फिर मोर भी हुआ धराशायी

घायल जो किया व्याध-शर ने

पर व्याध निकट जैसे पहुँचा

डस लिया व्याध को फणधर ने |


शेष रही बस छद्म-सुन्दरी

सृष्टि-रूप धर जीवन-थल पर

और सभी अंधे हो-होकर

नियति-भक्ष बन गए परस्पर |


— संतलाल करुण

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