अंतर्नाद
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देहियाँ पे गाढ़ा चुंबन
जड़ दिहला हो, रामा ! जड़ दिहला
सगरौ देहियाँ पे गाढ़ा चुंबन, जड़ दिहला |
हथवौ से जड़िला, नजरियौ से जड़िला
बहियाँ में लइके अँकवरियौ से जड़िला
अंगै-अंग होंठवा मुहर किहला |
उरौ पे जड़िला, उर-फुलवौ पे जड़िला
अँगुरियन कै टोहवा कुछ नहिं छोड़िला
पोरै-पोर रसवा भर दिहला |
हियवा कै छपवा हियरवा में उतरल
मनुआँ कै हिरना चेहरवा पे उछरल
सेजिया इंद्र-धनुसवा कर दिहला |
रामै कै देह, रामै तोहरा चुंबन
रामहि बरनवा, राम-रसरी में दुइ तन
सौ-सौ जनमवा रामा ! हर लिहला |
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— संतलाल करुण
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