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ओ, दसरथ माँझी !

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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ओ, दसरथ माँझी !


ओ ! दसरथ माँझी, ओ ! दसरथ माँझी

जियरा तू पोढ़ कइलो दसरथ माँझी |


जाना उस पार बीचे बाटै पहाड़

काटौ पाथर-गरब अपार

हाथ-गोड़ लोह कइलो दसरथ माँझी |


सोनवा कै गाछ जग जतन के हाथ

छिनी-हथौड़, संकलपहि साथ

तुहुँ रहिया सोझ कइलो दसरथ माँझी |


जिनगी मोहताज घर मौनी-अनाज

सबसे बड़-खर पेट कै आग

मेहनत कोख कइलो दसरथ माँझी |


जनम रेहार करम कैसे न लिलार

करमहि बदलत जग-संसार

धुन आपन जोत कइलो दसरथ माँझी |


देसवा महान भारू तबहूँ परान

परबत-पौरुष मिले न दाम

कूवत से भोर कइलो दसरथ माँझी |


— संतलाल करुण

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